'बंदूक किसी की-कंधा किसी का, गोली किसी की-निशाना किसी का...', काबू से बाहर किसान आंदोलन

एक तरफ किसान सड़कों पर ठंड में ठिठुर रहे हैं और दूसरी ओर देश की सबसे पुरानी व सबसे अधिक समय तक सत्ता भोगने वाली पार्टी कांग्रेस अपने अंतरकलह को लेकर पांच सितारा इंतजाम के बीच असंतुष्टों को मनाने प्रयास कर रही है. एक तरफ किसान सड़कों पर ठंड में ठिठुर रहे हैं और दूसरी ओर देश की सबसे पुरानी व सबसे अधिक समय तक सत्ता भोगने वाली पार्टी कांग्रेस अपने अंतरकलह को लेकर पांच सितारा इंतजाम के बीच असंतुष्टों को मनाने प्रयास कर रही है.

एक तरफ किसान सड़कों पर ठंड में ठिठुर रहे हैं और दूसरी ओर देश की सबसे पुरानी व सबसे अधिक समय तक सत्ता भोगने वाली पार्टी कांग्रेस अपने अंतरकलह को लेकर पांच सितारा इंतजाम के बीच असंतुष्टों को मनाने प्रयास कर रही है. पिछले 6 वर्षों में कांग्रेस ने बीजेपी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया प्रतीत होता है. किसी भी बड़े मुद्दे पर इन वर्षों में बीजेपी को घेरने में कांग्रेस असफल रही है. कभी-कभी तो लगता है सोनिया गांधी व राहुल गांधी बीजेपी के ही पेरोल पर कांग्रेस को समाप्त कर कांग्रेस मुक्त भारत के बीजेपी के स्वप्न व नारे को साकार करने में लगे हैं.

शनिवार को हुई बैठक में केवल यही मुद्दा प्रमुख रहा कि राहुल गांधी को अध्यक्ष पद स्वीकार कर लेना चाहिए. कांग्रेस गांधी परिवार के साये से बाहर नहीं आना चाहती या आ नहीं सकती यह एक शोध का विषय हो सकता है. 2-3 राज्यों को छोड़कर कांग्रेस कहीं सत्ता में नहीं है, 55 MP हैं लेकिन ठाठ वही राजसी वाले! किसी भी समय ऐसा नहीं लगा कि देश में कोई विपक्षी दल भी है, CAA के विरोध व किसानों के आंदोलन के सिवा कांग्रेस किसी भी समय सक्रिय व सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने में नाकाम रही है.

किसानों को भ्रमित कर रही कांग्रेस

कांग्रेस के द्वारा खड़ा किया गया तथाकथित किसान आंदोलन वास्तव में पंजाब के किसानों को भ्रमित करने का षड़यंत्र ही है. कांग्रेस के अनेक नेताओं कपिल सिब्बल व हुड्डा के संसद में किसान-कृषि बिलों के समर्थन में दिए गए पुराने वक्तव्य आजकल इंटरनेट पर घूम रहे हैं. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने स्वयं 2016 में इन सुधारों की सिफारिश की थी व सुधार कमेटी के सदस्य भी थे. 2019 के लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में कांग्रेस ने किसानों से MSP हटाने का वादा किया था परन्तु आज उन्हीं किसानों को करोना महामारी के समय कड़कड़ाती सर्दी में मरने के लिए छोड़ दिया है.

किसानों का आंदोलन तो मात्र बहाना

कांग्रेस धरातल पर जनाधार खो चुकी है. किसी भी चुनाव को जीतना उनके लिए कठिन होता जा रहा है. जब कोई बाहुबली बूढ़ा हो जाता है उसमे स्वयं लड़ने की क्षमता समाप्त हो जाती है तो वह गांव मोहल्ले के युवाओं को इकठ्ठा कर अपना साम्राज्य बनाये रखने का प्रयास करता है. किसान आंदोलन का कारण कुछ वास्तविक मुद्दे भी हो सकते हैं परन्तु जिस तरह से विरोध प्रदर्शन जिहादियों, वामपंथियों व पाकिस्तान-कनाडा से समर्थित खालिस्तानी चरमपंथियों के हाथ में जा चुका है, कांग्रेस के लिए अब वहां से निकल कर शिविर लगाने के अलावा कुछ अधिक बचा नहीं है.

कांग्रेस अब चाह कर भी इसको नियंत्रित नहीं कर सकती. देश विरोधी तत्वों के द्वारा देश विदेश से किये जा रहे समर्थन, वामपंथी व इस्लामिक गठबंधनों की स्थल पर उपस्तिथि, पर्दे के पीछे के संचालकों का चरित्र बयान करती है. वामपंथियों का इको सिस्टम पूरी दुनिया में फैले उनके नेटवर्क के माध्यम से इस आंदोलन को वैश्विक स्तर पर भारत की छवि ख़राब करने व प्रधानमंत्री मोदी की उभरती वैश्विक नायक की छवि को धूमिल करने का कार्य कर रहा है.

कौन हैं ये VIP किसान?

खालिस्तानियों व इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा आर्थिक बल दिया जा रहा है. पैरों के मसाज करने की स्वचालित मशीन की आवश्यकता एक किसान को तो कभी नहीं होती. वो तो नंगे पांव ही खेत में काम करता है. तो फिर कौन हैं ये VIP किसान जिनको तंदूरी चिकन के साथ पिज़्ज़ा भी चाहिए? क्या ये वही बिचौलिये व आढ़ती हैं जिनको इन कृषि सुधारों से सबसे बड़ी हानि होने वाली है? क्या ये वही हैं जिनकी मंडियों व सरकारी गोदामों के बाबुओं की मिलीभगत से किसान को उसकी उपज के सही दाम नहीं मिलते ?

इस सबके बीच एक दबा प्रश्न यह है कि केंद्र सरकार क्यों नहीं इन भ्रांतियों को किसानों के मन से दूर करती? यदि ये किसान नहीं हैं तो क्यों नहीं इन आढ़तियों बिचौलियों का पर्दाफाश करती? या फिर सही में यह सुधार किसानों के खिलाफ हैं? कहीं पर कोई तो सत्य बोल रहा है. अडानी अंबानी के सहयोगी के रूप में सरकार की छवि को प्रस्तुत किया जा रहा है. अडानी व अंबानी आगे आकर अपनी भूमिका क्यों नहीं स्पष्ट करते?

पढ़ें – कांग्रेस में होंगे बड़े बदलाव या गांधी परिवार के ही इर्द गिर्द घूमती रहेगी पार्टी की राजनीति?

अगर पुराने कानून अच्छे थे तो किसकी मांग पर सुधार लाये गए ? पुराने कानून अच्छे थे तो क्यों 70 वर्ष में किसानों की हालत बद से बदतर होती गयी, किसान आत्महत्या करते रहे. दूसरा आवश्यक प्रश्न यह है कि पंजाब के किसानों की औसत आय तो एक लाख के पार रही परन्तु राष्ट्रीय औसत 6.5 हजार ही है. क्या इन पुराने कानूनों में कुछ ऐसा था जिससे पंजाब व हरियाणा के किसान को ही फायदा था देश के अन्य राज्यों के किसानों को नहीं ? क्या इसी वजह से अन्य राज्यों के किसान चुपचाप खेती में लगे हुए हैं और इस तथाकथित किसान आंदोलन दूर हैं?

यह भी सत्य है कि यह आंदोलन किसान का हो या आढ़तियों का लेकिन अब उनके हाथ में भी नहीं रह गया. दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल नए कृषि कानून को अपने राज्य में लागू करने वाले पहले मुख्यमंत्री बन कर भी किसानों के लिए लंगर लगाने की व्यवस्था करते हैं क्योंकि उनको अगले वर्ष पंजाब में चुनाव जीतना है. देश विरोधी इस्लामी व वामपंथी ताकतें खालिस्तानियों के नाम पर भोले किसानों को सड़कों पर लाकर CAA व 370 का बदला लेना चाहते हैं. चीन के साथ चल रहे गतिरोध के बीच उसके इस आंदोलन को आर्थिक सहयोग पहुंचाने का जरिया ये शक्तियां हो सकती हैं. केंद्र सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेकर इसके दूरगामी दुष्परिणामों को ध्यान में रखकर कुछ समाधान लाना चाहिए.

पढ़ें – संभव होगा चौटाला परिवार का एकजुट होना, कितना रंग लाएगी रणजीत सिंह की सुलह कराने की कोशिश?

विपक्ष चाहता है कि सरकार इन सुधारों को वापस ले, उसे डर है इसके बाद UCC व NRC का बिल आएगा जिनके पास हो जाने पर इस देश में तुष्टिकरण व जातिगत राजनीती का अंत हो जायेगा, जिससे कई राजनितिक पार्टियों का भी अंत हो सकता है. यदि सरकार को बिल वापस लेने पर मजबूर कर दिया जाय तो इन बिलों का आना अधर में लटक जायेगा. लेकिन यदि बिल वापस होता है तो यह जीत किसानों या इन राजनितिक पार्टियों की नहीं कनाडा, ब्रिटेन व अमेरिका में बैठकर खालिस्तान का दिवास्वप्न देख रहे खालिस्तानियों की होगी और पंजाब में एक और दौर खून खराबे का जाय तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. आंदोलनकारियों की भाषा तो यही कह रही है.

लेखक गोपाल गोस्वामी SVNIT सूरत में मैनेजमेंट रिसर्च स्कॉलर हैं. यह उनके निजी विचार हैं.

crossmenu