मुर्शिदाबाद अद्वैत क्षेत्र में आजकल एक परचा मुसलमान बस्तियों में मुसलमानों के मोबाइल फ़ोन पर घूम रहा है, जिसमे मोबाइल फ़ोन के उपयोग, टीवी देखने, गाना सुनने, कैरम खेलने आदि पर इस्लाम के नाम पर प्रतिबन्ध की बात कही गयी है। इस फतवे में प्रत्येक तथाकथित गुनाह पर अलग अलग धनराशि का जुरमाना व सजा दोनों का प्रावधान रखा गया है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की इसकी सूचना देने वाले को भी इनाम दिए जाने की बात कही गयी है। है न मजेदार! मोबाइल के उपयोग पर प्रतिबन्ध का फतवा मोबाइल सन्देश से दिया जा रहा है। यह फतवा शराब व जुए पर प्रतिबन्ध की आड़ में जारी किया गया है। यहाँ आपको बता दूँ मुर्शिदाबाद भारत के ही बंगाल राज्य में है जहाँ लोकतंत्र है व ऐसा माना जाता है कि वहां शासन व्यवस्था संविधान से चलती है न कि शरिया कानून से। यह सर्व व्याप्त सत्य है कि जहाँ कहीं भी मुसलमान बहुलता में हो जाता है वहां पर शरीया कानून लागू करने की बात करता है व परसनल लॉ के नाम पर इसे थोप देता है। जिससे उस विस्तार में रहने वाला हिन्दू अपनी पूजा-पाठ या कोई भी धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं कर पाता है और यदि करता है तो उसके गंभीर परिणाम होते हैं। कई अवसरों पर हिन्दुओं की हत्या शंख ध्वनि करने, आरती करने या उत्सव, शोभा यात्रा करने पर केरल ,बंगाल, UP व अन्य राज्यों में हुई है जहां मुसलमान बहुसंख्यक हो चुका है। परन्तु वहीँ प्रतिदिन पांच बार अजान पूरे शहर या गांव को सुननी पड़ती है।
मुसलमान पीड़ित भाव दर्शित करने हेतु जिस संविधान के सेक्युलर स्वरुप व धार्मिक स्वतंत्रता की दुहाई देता है वही बहुसंख्यक हो जाने पर इस्लामिक कानून व भारतीय संवैधानिक व्यवस्था की धज्जियाँ उडाता है। भारत के कानून में विश्वास होने की बात करता है परन्तु उसी संसद द्वारा बनाये गए CAA को मानने से इंकार करता है। यह मानसिकता अनपढ़ या कम पढ़े लिखे मुस्लमान की नहीं है परन्तु संसद में बैठे, कानून पढ़े हुए असदुद्दीन ओवेसी जैसों की भी है। राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला होगा उसे मानेंगे की रट लगाने वाले ओवेसी मंदिर के पक्ष में निर्णय आने पर खुलेआम कह रहे हैं की सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों से अन्याय किया है। एक उलेमा ने तो यहाँ तक कहा कि जब हम बहुसंखयक होंगे मंदिर को गिरा कर पुनः मस्जिद बनाएंगे । बाबर, औरंगजेब, गजनी, तैमूर जैसे क्रूर आक्रांताओं को अपना पूर्वज व पीर मानने वाले मुसलमानों से उम्मीद भी क्या की जा सकती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पढ़ाये गए गलत इतिहास का यह परिणाम है।
कुछ विद्वानों व आम हिन्दू का मानना है कि आम मुसलमान कट्टर नहीं होता, केवल मदरसे में पढ़ने वाले ही कट्टरता की और जाते हैं। आम हिन्दू तो आज भी खिलाफत आंदोलन को अग्रेजों से आजादी का आंदोलन मानता है। उसे तुर्की ऑटोमन एम्पायर व् caliphate के बारे में कुछ ज्ञान ही नहीं है। वो तो खिलाफत को गांधीजी द्वारा चलाया गया असहयोग आंदोलन ही समझता है। खिलाफ शब्द को आज भी खिलाफत का मूल शब्द समझा व समझाया जाता है। अभी कुछ दिन पूर्व बंगलुरु से एक आँखों के डाक्टर अब्दुल रहमान को NIA ने इस्लामिक आतंकी ग्रुप Islamic State of Khorasan Province जो अफगानिस्तान व पाकिस्तान में कार्यरत है के लिए मेडिकल वेब एप्लीकेशन बनाने व अन्य व्यवस्था में सहायता करने के आरोप में पकड़ा है।
मदरसे में आँखों के डाक्टर नहीं बनते हैं। अफजल गुरु PhD था व दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर था। अभी हाल में ही बंगलुरु व केरल से गायब हुए छात्र ISIS के साथ यमन व सीरिया में लड़ने के लिए गए थे। यहाँ सिद्ध होता है कि मुसलमान आम या खास न होकर केवल मुसलमान होता है। भारत में जब भी इस्लाम पर चर्चा होती है तो यह तर्क देकर चुप करा दिया जाता है कि किसी के धर्म या मजहब पर चर्चा या ऊँगली उठाना उचित नहीं है। यह तर्क सामान्य परिस्तिथियों में मान्य है। परन्तु यदि वह पंथ, मजहब आपके धर्म या मान्यताओं के केवल विरुद्ध ही नहीं है अपितु उसके विरुद्ध मुहिम है तब? हम बालपन से पढ़ते सुनते आ रहे हैं कि कोई भी धर्म, मजहब गलत नहीं होता परन्तु उसके अनुयायी उसमे विकृति ले आते हैं। लेकिन इस्लाम के सन्दर्भ में ऐसा नहीं है, इस्लाम के मूल सिद्धांत उसको अन्य पंथों का जन्मजात दुश्मन बनाते है।
आप कल्पना कीजिये आपको बचपन से कहा जाय कि आपके पडोश के शर्माजी ने अपना घर हमारी जमीन हड़प कर बनाया है और उसे हमें वापस प्राप्त करना है तो यह स्वाभाविक है की शर्माजी के प्रति आपका वैर-भाव आरम्भ से ही हो जायेगा व जैसे जैसे आप समर्थ होने लगेंगे आप उनसे बदला लेने या जमीन वापस लेने का यत्न करेंगे। यही हाल मुसलमानों का है उनको जन्म से यही पढ़ाया जाता है कि केवल उनका भगवान ही असली भगवान है, जो उसको नहीं मानते वो काफिर यानि की नहीं मानने वाले अपवित्र लोग हैं। प्रत्येक मुसलमान का यह जन्मजात कर्त्तव्य है कि वह काफिरों को अल्लाह की पनाह में लाये। इसके लिए उसे पहले प्यार से मनाओ, नहीं माने तो लालच दो, लालच में नहीं आये तो डराओ, यदि फिर भी नहीं मने तो उसे कतल कर दो। इस्लाम में मजहब के लिए लड़ने को जिहाद कहा जाता है व यह जिहाद प्रत्येक मुसलमान पर तब तक लागू है जब तक संसार का प्रत्येक मनुष्य इस्लाम को नहीं मान लेता व मुसलमान नहीं हो जाता। किसी भी संस्कृति, सभ्यता के रहन सहन, खान-पान, विचार इत्यादि उसके दर्शन से प्रतिपादित होते है, परन्तु इस्लाम इसके दर्शन से नहीं अपितु तलवार के भय से फैला है। तलवार व बलपूर्वक किया गया धर्मान्तरण केवल आधिपत्य का प्रतीक है। यह धार्मिक सिद्धांत नहीं बल्कि राजनितिक व विस्तारवादी सिद्धांत है, जिसका आशय पूरी दुनिया में मुसलमानों का आधिपत्य जमाना ही है।
तो कैसे होगा इस समस्या का समाधान ? कैसे आएंगे बदलाव व सुधार ? एक टीवी कार्यक्रम में भाजपा के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन मुर्शिदाबाद के फतवों पर चर्चा के लिए बैठे थे, एक प्रतिभागी ने कहा कि जब तक कुरान से आपत्तिजनक आयतें हटाई नहीं जाती इस्लाम में यह घटनाएं बनती रहेंगी क्योंकि सभी मुल्ला-मौलवी क़ुरान से ही प्रेरणा लेकर अपने फतवे प्रतिपादित करते हैं। उन्होंने कुछ आयतों का हवाला भी दिया जो की सत्य है क्योंकि मैंने भी कुरान को पढ़ा है। यह देख कर आश्चर्य हुआ कि शाहनवाज जिनको पूरा भारत एक प्रोग्रेसिव मुसलमान मानता है ,उन्होंने ने कहा कि "यदि कुरान पर टीका-टिपण्णी करनी है तो में इस वार्ता का सहभागी नहीं हूँ। मैं भाजपा का कार्यकर्त्ता हूँ पर एक मुसलमान हूँ व मेरी पूर्ण आस्था कुरान में है।" उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोगों की वजह से आप सारे मुसलमानों को बदनाम नहीं कर सकते।
शाहनवाज जी धर्म के आधार पर जब देश का विभाजन हुआ था तब भी गाँधी जी व नेहरू जी का भी यही मत था कि सभी मुसलमान विभाजन नहीं चाहते परन्तु विभाजन हुआ ! सभी मुसलमान कश्मीरी हिन्दुओं को खदेड़ने व प्रताड़ित करने में शामिल नहीं थे परन्तु यह भी सत्य है कि हिन्दुओं की बहु-बेटियों को सरेआम बलात्कार किया गया, पुरुषों की हत्या की गयी। एक भी हिन्दू घाटी में नहीं बचा व देश के किसी मुसलमान ने इसकी निंदा नहीं की। मुर्शिदाबाद के फतवे पर न देवबंद बोला न आला हजरत। किसी भी इस्लामिक संगठन ने इसका विरोध या उस मौलवी के बहिष्कार की घोषणा नहीं की। हम Gaza under attack को भारत में ट्रेंड करते हुए देखते हैं परन्तु कश्मीरी हिन्दुओं को वापस बसाओ की बात देश का एक भी मुसलमान नहीं करता।
क्या हैं वो बातें जो मुसलमानों को हिन्दुओं से या अन्य विधर्मियों के विरुध्द जिहाद करने के लिए प्रेरित करती हैं! ये कुछ आयतों को देखते हैं: -
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(१) फिर, जब पवित्र महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिकों’ (मूर्तिपूजकों ) को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। ( कुरान, सूरा 9, आयत 5)
(२) जिन लोगों ने हमारी ”आयतों” का इन्कार किया (इस्लाम व कुरान को मानने से इंकार) , उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं” (कुरान सूरा 4, आयत 56)
(३) ईसाइयों और यहूदियों के साथ मित्रता मत करो (क़ुरान, सूरा 5, आयत 51)
(४) काफिरों को जहाँ पाओ, उनको जान से मार दो (क़ुरान, सूरा 2, आयत 191)
(५) ईमान वालों, अपने आस-पास रहने वाले काफिरों के साथ युद्ध करो। उनको तुम्हारे अन्दर कटुता दिखनी चाहिए (क़ुरान, सूरा 9, आयत 123)
इसी तरह की सैकड़ों आयतों में इस्लाम या उसके सिद्धान्तों में विश्वास न करने वालों के साथ हिंसा का उपयोग करने की सलाह दी गयी है।
स्पष्ट है समस्या धार्मिक ग्रंथों में है, उनको पढाने वाले मुल्ला-मौलवियों में है। जब तक उन आपत्ति जनक सिद्धांतों को हटाया नहीं जायेगा, मदरसों में काफिरों के विरुद्ध जहर भरना बंद नहीं होगा, तब तक इस्लाम एक आक्रामक व आतंक से परिपूर्ण धर्म बना रहेगा। अमेरिका स्थित एक पाकिस्तानी विद्वान जावेद घामिडी कहते है- "यदि इस्लाम से चार बातों को नहीं हटाया गया तो यह संसार एक दिन रहें लायक नहीं रह जायेगा,चारों तरफ आतंक व बर्बादी का मंजर होगा।" उनकी कही वो चार बातें निम्न प्रकार से हैं :-
१. यदि दुनियां में कहीं भी कोई व्यक्ति इस्लाम छोड़ेगा तो उसकी सजा मौत होगी व उसको सजा देने का हक किसी भी मुस्लमान को होगा
२. दुनियां में केवल मुसलमान को ही राज्य करने का अधिकार है, गैर मुस्लिम की हुकूमत नाजायज है, जब हमारी ताकत होगी उसको पलट देंगे
३. दुनियां में केवल एक ही राज्य, इस्लामिक राज्य होना चाहिए, जिसे caliphate या खिलाफत कहते हैं
४. राष्ट्र की अवधारणा हराम है , नेशन स्टेट जैसी कोई व्यवस्था हमको मान्य नहीं है,यानि आपके संविधान कानून को हम नहीं मानते
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उपरोक्त बातों से हमको समझना चाहिए कि यदि कोई मुसलमान कहता है कि वो universal brotherhood में विश्वास रखता है और उसके लिए देशों की सीमाएं मायने नहीं रखती बल्कि वो पूरे विश्व को एक परिवार मानता है तो झांसे में न आएं व "वसुधैव कुटुम्बकम" समझने की भूल न करें, वो इस्लामिक भाईचारा व इस्लामिक स्टेट की बात कर रहा है जिसमे काफिरों का कोई स्थान नहीं। केरल व बंगाल में कई गांव, कई तालुक इस्लामिक स्टेट की तरह सत्ता चला रहे हैं व शरिया का पालन करवा रहे हैं। समय आ गया है इन बातों को खुले मंच से करने का व इस्लाम से उन सभी बातों को हटवाने का जो व्यक्ति-व्यक्ति में भेद करते हैं, महिला-पुरुष में भेद करते हैं, जीव हत्या को बढ़ावा देते हैं, अपने सिवाय अन्य को नीच, काफिर मानते है। हमने मुल्ला-मौलवियों व मुसलमानों पर बहस करना तो आरम्भ किया है परन्तु आवश्यकता इस्लाम में सुधार की है। क्योंकि वह सीख, वह नफरत, वह विद्रोही प्रवृति वहीँ से आती है। इसके लिए मुस्लिम समाज को स्वयं आगे आकर इन कुप्रथाओं, अंध-विश्वाशों को दूर कर अपने आने वाले भविष्य की पीढ़ियों को एक बेहतर दुनिया देने का संकल्प कर इन सुधारों को लागू करना चाहिए यही मानव मात्र के कल्याण का मार्ग है। अन्यथा भारत भी बहुत जल्दी सीरिया, इराक या अफगानिस्तान जैसी स्थिति में पहुँच जायेगा।